ग़ज़ल
ग़ज़ल
हम भी क्या जिंदगी गुजार गए
दिल की बाजी लगी तो हार गए
शुक्र है ज़िंदगी तबाह न की
कोशिशें की मगर बे-कार गए
बारिशों में भी रोज़ जलते रहे
खुशबू-ए-जां धुएं निजार गए
जिंदगी मेरी क़त्ल करती रही
मौत से मिलके हम तो यार गए
साथ मेरा सभी ने छोड़ दिया
दिल के आगे वो दिल से हार गए
हादसे दिन ब दिन ही बढ़ते रहे
साल दर साल हद से पार गए
सिर झुका भी नहीं ख़ुदा के सिवा
वक्त के फैसले हज़ार गए
तू वही और महफ़िलें वो विशू
चैन छीना दिल-ए-करार गए।

