यह हैवानियत कब तक?
यह हैवानियत कब तक?
कब तक हैवानियत यूं ही
नंगा नाच नाचेगी,
कब तक औरत यूं ही बलि
चढ़ाई जाएगी ,
कब तक संस्कारों की दी जाएगी
तिलांजलि, और मानवता में
आग लगाई जाएगी
कब तक यह पुरुष
अपने पुरुषत्व पर आमादा हो,
विनाश की लीला रचाएगा,
घर बैठे लोग देखें तमाशा,
टीवी व अखबारों पर जब
यह समाचार आएगा,
ले मोमबत्तियां हाथों में लंबी
लाइन बनाई जाएगी,
तब संसद तक यह बात खुद
ही चल कर जाएगी,
प्रदर्शन जब जोरों शोरों पर होगा,
कार बसें और जन संपत्ति जलाई
जाएगी,
यह सोच पछतावा होता है मुझे।
ना कोई उपाय है इसका, ना कोई तोड़
जब भारतीय न्यायालय अपराधियों को
नाबालिक देखकर देकर तमगा
बाल सुधार गृह पहुंचाएगी
पछतावा होता है मुझे
बच्चे तो वहीं पर है पर ना जाने क्या
हो गया है ,
इंसान के रूप में शैतान खड़ा हो गया है ,
करते हैं विचार सभी
अब उन्माद यह कैसा हो गया है,
जो भी अखबार उठा कर देखो ,
हर जगह दिखती लाचारी है,
जैसे भारतीय सभ्यता को लगी कोई
गहरी बीमारी है ,
करते थे जो घमंड हम
सारे जहां से अच्छा हिंदुस्ता हमारा का
वहीं अब नहीं बन पा रहा
अपनी ही बेटियों का सहारा,
सुरक्षित नहीं कोई गली ,मोहल्ला
और चौबारा,
घर में भी चार दीवारों से
झांकता है उसे संसार सारा,
तुम ना करो कोई उपाय तो
वह क्या शांत रह पाएगी,
बनेगी काली ,अग्नि ,रणचंडी बन
वह विध्वंस मचाएगी ,
नहीं रुकेगी नहीं थमेगी,
जब वह अपनी पर आएगी ,
मार डालेगी तुम्हें अपनी कोख में ही ,
पनपने नहीं देगी पुरुषत्व का बीज तुम्हारा,
संभल जाओ, सुधर जाओ नहीं तो
ज्वाला आएगी,
नहीं तो ज्वाला आएगी।