यह दुनिया
यह दुनिया
आज की दुनिया कैसी है,
देखो भाई ऐसी है।
सब पैसे के पीछे भाग रहे,
इंसान सारे हाँफ रहे।
रुकने का यहाँ नाम नही,
इंसानियत का काम नहीं।
केवल पैसों के लिये
दुश्मन भी बन जाता भाई।
पैसों के कारण ही यहाँ
कट मिटते हैं भाई-भाई।
बूढ़े माता-पिता का यहाँ
हो चुका है बुरा हाल।
कब तक कुछ है उनके पास
रखो उनका खूब ख्याल।
पैसे लाने में जब काम न आये
वृद्धा आश्रम में भेजे जाए।
सोचते एक बार नहीं
इनके साथ होना वही।
माँ, बहन, भाई न रहा
पैसों से बढ़कर यहाँ।
कब बदलेगा ये ख्याल
ठीक होगा कैसे ये हाल।
सोच कर ही लगता है डर
कैसे होंगे ये सब मंजर।
शुक्र मानती हूँ इस बात का मैं
देखा नहीं कभी आस-पास में।
जिन माँ-बाप ने दिया जन्म
न रहा उसके प्रति कोई धर्म।
काश हो ये सब मेरा एक भ्रम
पैसे कमाना ही रहा है धर्म।