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Madhu Gupta "अपराजिता"

Tragedy

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Madhu Gupta "अपराजिता"

Tragedy

ये उजले-उजले चेहरे.

ये उजले-उजले चेहरे.

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ये उजले - उजले चेहरे देखो, अंदर से कितने सियाह हैं l

अब आके यारों मैंने सब, चेहरों के राज पहचाने हैं ll

एक मुसाफिर ने आकर, दुनिया मुझको दिखलाई है l

चेहरों के पीछे कितने चेहरें ,ये उसने मुझको बतलाई है ll

ये उजले - उजले चेहरे देखों, अंदर से कितने सियाह है ll

अंजान बने खड़े हैं ऐसे, जैसे कुछ भी ये ना जाने हैं l

हर चेहरे के भाव अलग हैं ,अब आके हम पढ़ पाएं हैं ll

ये उजले- उजले चेहरे देखों, अंदर से कितने सियाह हैं ll

संग- संग चलते हैं सब पर अंदर के राज निराले हैं l

समझ रहे हैं खुद को ऐसा, जैसे हम यहाँ अनजाने हैं ll

ये उजले - उजले चेहरे देखों, अंदर से कितने सियाह हैं ll

चमक बिखेरे ऐसी अपनी ,जैसे सबको ही भटकाए  हैं l

खबर नहीं है उनको अब तक, चेहरों के राज कहाँ छुप पाएं हैंll

ये उजले - उजले चेहरे देखों, अंदर से कितने सियाह हैं ll

एक- एक चेहरा देखों, यहाँ पर कितने नकाब चढ़ाता है l

अब जाकर जाना यारों दुनिया कितना बड़ा झमेला(धोख़ा) है ll

ये उजले- उजले चेहरे देखो अंदर से कितने सियाह हैं ll

 मैं भी उनमें शामिल हूँ मुझ में भी यहीं बुराई है l

पर मान के बात मैंने ये देखो, खुदा की खुदाई अपनाई है ll

ये उजले- उजले चेहरे देखो अंदर से कितने सियाह हैं


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