ये जो चुनरी में दाग़ है
ये जो चुनरी में दाग़ है
ये जो चुनरी में दाग़ है
क्यूँ छुपाती फिरती हो ।
मोती जैसे आँसुओ से
ख़ुद को भिगाती फिरती हो ।
इस दाग़ के
हिस्सेदार हैं बहुत
इस दाग़ के
किस्सेदार हैं बहुत
फिर क्यूँ सिर्फ़ ख़ुद को
रुलाती फिरती हो ।
जग को बता दो
क्यूँ तुम जैसा ना दूजा
क्यों हो तुम दुर्गा
क्यों जाता तुम्हें पूजा
अबला हो तुम
- ये क्यूँ जताती फिरती हो ।
आओ ! लड़ो,
मत डरो,
ये समर है तुम्हारा !
सुना दो इस जग को,
ये घमर है तुम्हारा !
गिरी हुई इस दुनिया में
क्यूँ ख़ुद को गिराती फिरती हो ।
ये जो चुनरी में दाग़ है
क्यूँ छुपाती फिरती हो...!
