ये अंधेरा भी मिट जाएगा
ये अंधेरा भी मिट जाएगा
ये अंधेरा भी मिट जाएग
ये अंधेरा भी मिट जाएगा
दिलों में छाया नफ़रत का ये
बादल भी मिट जाएगा
जो गरज रहा सितमग़र
उसका जुनून भी मिट जाएगा,
ये अंधेरा भी मिट जाएगा
छलकते आंसुओं को देखकर
जो सीना तान रहा
मजलूम की मजबूरी को जो
अपनी फ़तह मान रहा
मासूम की हर सदा को
जो सरपरस्ती कह रहा
ताज ओ तख्त का वो नज़र ओ
फ़िक्र भी जेर ए जमीं हो जाएगा
ये अंधेरा भी मिट जाएगा
मजहब की तपिश का ये
गुबार जो बन गया है
दिलों पे ये जो गैरत का
पर्दा तन गया है
हमसाय को भी हषद हो चला है
ये हषद का मरहला भी गुजर जाएगा
ये अंधेरा भी मिट जाएगा
ये जो चहल-पहल बढ़ी हुई है
बुलबुले बेहशद में पड़ी हुई है
बेतरनुम सी जो छाई हुई है
चमन की ये खामोशी भी मिट जाएगी
ये अंधेरा भी मिट जाएगा
बेगुनाह में जो गुनाहगारी का
आलम छा रहा है
राम और रहीम का भेद जो
फैलाया जा रहा है
फिरका परस्ति का नासूर जो
गहराया जा रहा है
ये नफरतों का दौर भी
बेअसर हो जाएगा
ये अंधेरा भी मिट जाएगा
दिलों में जो गरज रहा ये अंधेरा।