आओ लगाएं एक ऐसा श़ज़र
आओ लगाएं एक ऐसा श़ज़र
आओ लगाएं एक ऐसा श़ज़र
कि जिसके साए में
हम भी बैठें और तुम भी बैठो...........
ये शमशीरें हर वक्त जो तनी हुईं हैं ,
बश़र को मिटाने बसश़र में ठनी हुई हैं ,
ये गुलशन सी वादियां जो कब्रगाहें बनी हुई हैं
इन वादियों में आओ लगाएं एक ................
कि जिसके........
हम भी बैठें........
ये जुबां की आतिश जो जल रही हैं
हमसाए को मिटा दूं ऐसी बयारें जो चल रही हैं
साहिल पे पहुँची कश्तियां डुबोई जा रही हैं
इस साहिल में आओ लगाएं........
कि जिसके...........
हम भी बैठें.......
ये ज़मीं के अक्स पे लकीरें सजा दी ,
खंजर थमा के फसीलें बना दी ,
हर चशम को देखो -हषद के कोहेगरा खड़े हैं
इस कोहेगिरा में आओ लगाएं..........
कि जिसके...........
हम भी बैठें..............
ये तख्त की वफा में ज़मीं को जला रहे हो,
अमन की फिज़ा में ज़हर जो मिला रहे हो
सरसब्ज चमन को जो सेहरा बना रहे हो
इस सेहरा में आओ लगाएं.........
कि जिसके............
हम भी बैठें.............
रहीम "नादान"