यायावर हो चला है तन -मन !
यायावर हो चला है तन -मन !
बाँध सकी ना पायल छम - छम,
खनक उठा कितना ही कंगन।
तोड़ चुका अब सारे बंधन,
यायावर हो चला है तन-मन।।
माँ की गोद से उतरा जब मैं,
छूटा पहला सुख दुनिया का।
पाँव पड़े जब घर से बाहर ,
भटक खुल गया सब तन-मन का।।
कब तक विष ले महके चन्दन,
यायावर हो चला है तन-मन।।
बचपन बीता यौवन आया,
कहाँ कहाँ मन को भटकाया।
उसने तो अमृत छलकाया,
अपने हिस्से विष ही आया।।
तेरी काया अपनी भटकन,
यायावर हो चला है तन-मन।।
सूरज ढले बिताये कुछ दिन,
काली रात ने पाँव पसारे।
चोर ले गए रूप रंग दिन,
दुर्बल काया रंग दिखाए।।
सूर्य ग्रहण बन बैठा जीवन,
यायावर हो चला है तन-मन।।
अब तो मैं हूँ सिर्फ अकेला,
सहता स्मृतियों का दंश।
छूट चला पीछे सब मेला,
क्या निर्माण हो क्या विध्वंस !!
एकाकी जीवन का वंदन,
यायावर हो चला है तन-मन।।