यादों की पुड़िया
यादों की पुड़िया
तेरी यादों की पुड़िया को मैं
रोज बांध कर रखती हूं
ना जाने हवा का झोंका ये
रोज कहां से आता है
खोलकर तेरी यादों की पुड़िया को
सारे घर में बिखरा जाता है
तब महक उठता है घर मेरा
तेरी यादों की खुशबू लेकर
हर कोना कुछ यह कहता है
हर दीवार पर यादें सजती हैं
खिल उठती हूं मैं तब किरणों सी
और फिर फूलों सी महकती हूं
तेरी यादों को मैं फिर से
उस पुड़िया में बंद कर लेती हूं
और करती हूं फिर इंतजार
उस आने वाले हवा के झोंका का
जो फिर तेरी यादों को
सारे घर में बिखरा जाएगा।