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यादों के रंग

यादों के रंग

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मन में यादों के तरंग क्या उठे देखो

रुपहली नदी के परे, गिला सा चाँद

खिल गया,

मेरे किस काम का


जब तुम्हारी यादों ने मुझे छुआ 

सीली हवा के झोंके टेसूओं को

बिखराते है जैसे  

बस कुछ-कुछ यूँ मैं बिखर गई !


कहाँ कोई और है मेरा 

गुज़री जो तुम संग वो ज़िंदगी

अभी भी

हथेलियों पर झिलमिलाती है, 

कहाँ बोऊँ तुम्हारे दिल सी कोई

ज़मीन भी तो नहीं!

 

बस तुम थे मेरे दिन के संगी 

रात के साथी, थे हम तुम कभी

दीया और बाती !


अब ना तो मेरे दिन उगते है

ना रात ढलती है,

ये किस मोड़ पर ज़िंदगी ठहरी है!


मोह की गिरह मनचली तो नहीं थी

क्यूँ धागे टूट गए रोज़ तय करूँ

फासले कितने भी

फिर भी बढ़ते चले जाते है!


मीलों से दिन लगे अब 

ना कटें सालों सी रातें 

अंधेरों का दामन थामे नैया तुम्हारे ही

दिल की पतवार ढूँढे।।

      

सुना है होते तो है तुम्हारी गुफ़्तगु में

मेरे नाम के भी कुछ चर्चे,

ज़हन में ज़िंदा हूँ तो थोड़े तय करो ना

तुम भी कुछ फासले।।



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