व्यस्त
व्यस्त
मन हल्का करूँ तुझसे दो बात करके
रहा नहीं वक्त किसी के पास ऐसे हालात करके
है सूकूं बस तुझको ही एहसास करके
ले चल मुझे भी दूर एक मुलाकात करके।।
कोई उंगलियाँ फेरते ही रह जाता है
सोच कर उनका खयाल मन में गुम जाता है
लफ्जों को वक्त नहीं बयां करने की
ये सोच कर ही वह कितना वक्त गवाता है।।
रह गयी याद गुमनाम ऐसे खयालात करके
रहा नहीं वक्त किसी के पास ऐसे हालात करके..
अब सबके अपने ही बनाये दायरे हैं
वक्त है फिर भी वक्त नहीं ऐसे पेश आए हैं
जमाना बीत गया है, सब समझते हैं
पर दिल तो वही है, उसकी दशा क्यूं छिपाए है।।
बंद कमरे में ही रह गया तू अपने ज़जबात ले के
रहा नहीं वक्त किसी के पास ऐसे हालात करके...