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Supreet Verma

Abstract Drama

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Supreet Verma

Abstract Drama

नज़रिया

नज़रिया

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ठहर के देखते तो ठहराव की आवाज़ 

धूप में पसीना, और पेड़ की छांव का एहसास 

वक्त में जिंदगी और गुजरती जिंदगी की बात 

कशमकश दूर करते तुम इस तरहा कुछ काश।।


है सफर हमारा और सफर में हमसफ़र का साथ 

खुशनसीबी हमारी की मान ली ये बात 

काले बादलों के छटते ही छिटकी चांदनी सी रात 

उछल कर नाच गया दिल देख टिमटिमाता चांद।।


व्यस्त हो गया वक्त, खाली बैठ कर ये तात 

पूछ कर उनका कुछ इस तरहा पकड़ा हाथ 

स्वप्न में किया जगते स्वप्न को साकार 

आई सांस जब हकीकत बना ये काश।।


बीतते वक्त और वक्त का ठहराव 

गुजरते लोग और लोगों के ये भाव (तेवर)

मन खट्टा और दहलीज पे मीठे से पांव 

ठहर कर देखते तो कहते 

ठंडी है तेरे पेड़ की ये छांव।।



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