सब्र
सब्र
सब्र भी कभी कभी हताश होते हैं
जब आप में हम, हम में आप दिखते हैं।
जिससे प्यार था उससे कभी कह न सके
जिसके साथ थे उसके कभी हो न सके
दुविधा है मान सकते नहीं
समझ उन्हें सब आता है फिर भी कुछ कहते नहीं
इनिशियल सब है पर फाइनल कुछ भी नही
हकीकत पता है फिर भी जाने देते नहीं
कहूं तो हिम्मत नही, या फिर इतनी चाहत नही
पर उस जिंदगी का क्या जिसका अब तक हुआ कोई नही।।।।
परेशान हो गया मन टकरार है दिलोदिमाग की
याद कर के कहता है गलती है अपने आप की
वक्त पर सुधर जा या फिर सुधार ले
मौन कर ले जिंदगी और खुद को सवार ले।
उबाल है जिनका आंखो में उनको भी अब निकाल दे
बहोत हुआ सब्र अब हिम्मत से खुद को ढाल ले।