किरदार
किरदार
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वो किरदार कहानी का फिर से जहन में आया है,
जिस कहानी को पढ़कर उन्होंने बरसो पहले जलाया है।।
आहट हुई जब,तो थोड़ा याद किया फिर ठहर से वो गए
बेचैन हुआ उनका दिल ये सोंचकर फिर दोबारा क्या करें।।
दिल चाहता है जी लूं वो कश्मकश फिर दोबारा,
पर कैसे सभालूं उसको जिसने अभी मुझको है संभाला।।
सोचकर, उसे भूल कर, जो है उसकी कदर कर
कहीं ये मीठा कहकशा डुबो न दे तेरा ये भी घर।।
ये किरदार
कहीं ठहर, कर सबर न भटक तू भी यूं दरबदर,
यू तोड़ कर घरों को फिर से उसी घर से न गुजर।।
