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अंजनी कुमार शर्मा

Abstract Fantasy

3.7  

अंजनी कुमार शर्मा

Abstract Fantasy

वर्षा ऋतु की छटा निराली

वर्षा ऋतु की छटा निराली

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वर्षा ऋतु की छटा निराली,

बादलों का घोर गर्जन

सुन जिसे सिहर उठे तन

छा गया पल में अंधेरा,

रात हो ज्यों स्याह काली।

वर्षा ऋतु की....।


झर-झर नभ से गिरता पानी

अनिल में है नई रवानी

गा रहे मयूर वन में,

झूम उठी है डाली-डाली।

वर्षा ऋतु की।


स्वर्ग के सम सज गई धरती

सुर-गंधर्व को मोहित करती

कुसुमित हुए पुष्प वन-वन में,

खेतों में छायी हरियाली।

वर्षा ऋतु की..।


सावन, मल्हार, कजरी की धुन,

दादुर की टर-टर ध्वनि को सुन

मन उल्लासित होकर झूमे,

गाये कोयल हो मतवाली।

वर्षा ऋतु की...।


तन पर शीतल पड़े फुहार

मध्दम-मध्दम बहे बयार

नन्हे बालक तिरा रहे हैं,

सुंदर नौका कागज़ वाली।

वर्षा ऋतु की छटा निराली।


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