क्या लिखा था उन लकीरों में..?
क्या लिखा था उन लकीरों में..?
जाने क्या लिखा था उन लकीरों में
देखते ही वो विचलित हो उठा
नज़रे थी किसी को तलाशती हुई
मन ही मन बाँच डाला
उन कटी पीटी लकीरों की लिखावट को
मानो..
चिठ्ठी खुली भी नहीं और सब जान लिया
दीवारों को कुदते फांदते वो बाहर आया
राह रोके सब मौन पड़े
कर्मो की पोटली काँधे डाली
सुखों का एकतारा हाथ थाम
निकल पड़ा वैरागी दुःखों के गली से
अब ना कोई उलझन थी
कोई भरम/ कोई माया नहीं
पंछी चोला बदल उड़ने को व्याकुल
बस इतनी थी वैरागी बन घर छोड़ने की कहानी
वो आज इसी घर से लेने को अंजुली भर चावल
पुनः लौट आया था
जैसे..
लौटती है बिन पता बिन चिठ्ठी के लिफाफा
शायद लेने को नाम और पता।