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अंजनी कुमार शर्मा 'अंकित'

Abstract Others

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अंजनी कुमार शर्मा 'अंकित'

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रे मन! यह संसार बेगाना

रे मन! यह संसार बेगाना

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रे मन! यह संसार बेगाना

बेमतलब का आना-जाना।

यह जीवन है सूरज जैसा

संध्या होते है ढल जाना।

माया-मोह है यह जग सारा

क्षण भर का यह ताना-बाना।

जो है सब यही छोड़ गया वो

अंत समय जब हुआ रवाना।

रे मन! यह संसार बेगाना।


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