STORYMIRROR

Pritam Pandey

Abstract

4  

Pritam Pandey

Abstract

ख़ौफ़-ए-कोरोना

ख़ौफ़-ए-कोरोना

1 min
693

यह कैसी वबा मची हैं दुनिया में दोस्तों

जिसकी कोई दवा नहीं हैं दुनिया में दोस्तों


ना हाथ मिलता ना दिल मिलता हैं अब तो 

फ़िर कैसे कोई फ़ना हो दुनिया में दोस्तों


कतरा रहें हैं सब नज़र मिलाने से भी अब

ये कैसी हवा चली हैं दुनियाँ में दोस्तों


मदद करना भी चाहें तो भाग जाते हैं सभी

ये कैसा वक़्त आन पड़ा हैं दुनियाँ में दोस्तों


हरम भी ख़ाली हैं मस्ज़िद भी वीरान हैं

यह पहली बार हुआ हैं दुनियाँ में दोस्तों


ना मैकदों में रौनक हैं ना बाज़ार में हलचल

सब ज़गह पे ताला लगा हैं दुनियाँ में दोस्तों


जिधर भी देखों सन्नाटा सा दिखता हैं

ना कोई शोरगुल ना कोई सदा हैं दुनियाँ में दोस्तों


जिससें रौनक थी गली कुचा बाज़ार में

ओ सब छुपा बैठा हैं दुनियाँ में दोस्तों


सांस लेना भी दुष्वार अब मिलना भी मुश्किल

ज़हर हवा में कितना घुला हैं दुनियाँ में दोस्तों


आ बैठ जा सब छोड़ के तीरे नदी पर तुम

की सबकों यहीं पर आना है दुनियाँ में दोस्तों।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract