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Pritam Pandey

Abstract

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Pritam Pandey

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जल रहा शहर

जल रहा शहर

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जल रहा हैं शहर और जल रहें हैं लोग

फ़िर कैसे लगाए हम मालपुए का भोग


स्वाद भी इतनी निठुर अभी मेरी हुईं हैं नहीं

जल रहें शहर की चिंता से स्वाद कोई जग़ी नहीं 


हाथ में मरहम लिए शाकी सा मैं तो घूम रहा

मिट जाए नफ़रत सभी इस सोच में मैं रह रहा


हाथ में हर हाथ हो हर चेहरे पर मुस्कान

प्यार हो हर शहर में ना कोई गुमान


यहीं कामना होली की सबके साथ सबके संग हो

गालों पर सबके प्यार गुलाल अबीर और रंग हो।


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