21 दिन
21 दिन
साथी हाथ नहीं बढ़ाना,
जरा सी हिम्मत तो दिखाना,
चेहरे पर मुस्कान लाना,
लेकिन साथी हाथ नहीं बढ़ाना।
घर से करमवीरों की हिम्मत तू बढ़ाना,
लेकिन साथी हाथ नहीं बढ़ाना।
मौका मिला है कुछ कर दिखा,
चल, कुछ दिन घर बैठकर दिखा
कोई हथियार नहीं, कोई तोप नहीं,
कोई तानाशाही नहीं है।
ये खामोश युद्ध है, जहां हर एक सिपाही,
कोई अकेला ही नहीं है।
सड़को पर कोई शोर नहीं है,
ये युद्ध का मैदान है
जहां अगर कोई परछाई है,
तो को खतरे का निशान है।
यहां बैठ ,वहा बैठ ,
घर का कोना कोना देख,
सच..वो भी कब्ज तेरे आने को बेचैन है।
खंगाल के अलमारियां,
को छोटी छोटी संडुक्चिया,
जिसको तूने ही छुपाया था
कर के हंसी ठिठोलिया
21 दिवस का लॉकडाउन है...
कर वो 21 काम, जो नहीं
कर पाया तू 21 सालों से,
पैसा पैसा बहुत कर लिया,
जा करवा ले चंपी मा से बालों में।
21 दिन तू घर में बैठ,
नहीं तो 21 साल पछताएगा,
21 साल तू जाएगा
पीछे, रोना रोना चिल्लाएगा।
ना फिर आएगा कोई मोदी समझाने
जान की भीख तू मांगेगा
काश काश...बस कहेगा तू
और काशी जाके थम जाएगा।
