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Preeti Gupta

Abstract

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Preeti Gupta

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मन

मन

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मन का टकराना सच्चाई से

फिर घबराना सच्चाई से

लेकिन चलते जाना फिर भी तुम

ये सच ही तुम्हें बचाएगा

बुराई की परछाई से।


अच्छा या बुरा सिर्फ एक शब्द है

सच में ये तो मन के रूप है

बुरा लगे बड़ा ही सुन्दर

सच को कहे सब कुरूप है


मेरा मन है मंदिर

मेरा मन ही मेरा भगवान है

मैं में जो भी चलता है

उससे बाहर मेरी पहचान है।


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