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Pallavi Garg

Abstract

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Pallavi Garg

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एक परवरिश

एक परवरिश

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नन्ही कली जब मेरी पंखुड़ियों

में सिमटी हुई थी।

तब मैंने उसके मुस्कुराहट रूपी

मोतियों की माला बनाकर

धरा पर बिखरने के डर से मैने

उसी के गले मे पहनाई थी।


जब मेरा ही प्रतिबिम्ब लिये

फैलाई है ,उसने अपनी पंखुड़ियां

जब जब वह घबराई है

हवा के तेज झोकों से,

या बिजलियों की तेज गड़गड़ाहट से।


तब तब मैंने उसे जड़ और तने की

दोस्ती का महत्व समझाया।

ताकि अगर बिखर जाएं मेरी पंखुड़ियां

काल के घेरे मे।


वो जड़ और तने की दोस्ती के सहारे

एक अनुपम औषधि बन

खुद को और मुझे हमेशा के लिये

अमर कर दे।


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