विदाई बेटों की
विदाई बेटों की
बेटे विदा होते हैं
तब चली जाती हैं उनकी अठखेलियाँ
चली जाती है उनकी बिना बात की जिद
चला जाता है वो गोदी मैं सिर रखकर बैठ जाना
चली जाता है वो हर काम पूछ कर करने की आदत
चले जाते है उनके हर एक बात पर नुस्ख
चली जाती है हर काम माँ से करवाने की आदतें
रह जाती है वस सिमटे कमरे
ममता की छांव से छांव शब्द का निकल बस ममता रह जाना
और बेटों की विदाई को नकारता अस्तित्व।
