उड़ान
उड़ान
खोली आंखें इस दुनिया में आकर जब
पाया दुलार माँ का
ज्ञान मिला पिता से अटूट।
भाई से मिला सुरक्षा कवच
और महफ़िलों मैं मिला आनंद भरपूर।
लेकिन जब भी बैठे एकांत में हम
तो पाया केवल खुद में अंधेरा।
मन बोला उड़ान से अपनी
रोशनी में खुद में जगाउँगा।
कर सब इन्द्रियों बस में अपने मैंने
जब उस अर्जुन सा तीर चलाया।
जग गई रोशनी मेरे मन में
और अपनी उड़ान का रास्ता मुझे
अंधेरो में भी नजर आया।
