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Pallavi Garg

Abstract

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Pallavi Garg

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एक उदासी

एक उदासी

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अब लगता है, मानो जैसे

जिन्दगी बन गयी हो पत्थर

और वक्त बन गया हो

वो दरिया जो बह रहा हो

इन पत्थरों पे से।


अब लगता है मानो जैसे

अगर कोई तूफान इस

दरिया में आ भी जाएगा

तो भी इन पत्थरों को नहीं

हिला पाएगा।


अगर ले गया कोई

शिल्पकार इन्हें उठाकर तो

कोई मूर्ति भी नहीं गढ़ पाएगा।


अब तो दरिया में पड़ा ये पत्थर

इतिहास ही कोई नया रच पाएगा।।



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