सागर किनारे चलते हैं....!
सागर किनारे चलते हैं....!
मन उब जाये तो
चलो कहीं चहलकदमी करते हैं
किसी बीच पर कुछ अलग करते हैं
दोस्तों संग मस्ती/ गणशप
नहीं कोई आस पास बस्ती
कुछ और नहीं तो कोई सवारी ही
स्कूल से थोड़े समय की मुक्ति
ना कोई कॉपी किताब
ना सवाल जवाब
इनके चंगुल से युक्ति
पर
उल्लास उमंगों का साथ रेला
ग़मों के साये से
या कि
तमाम झमेलों से कुछ पल की मुक्ति
चलो चलते हैं
लहरों संग खेलते हैं
साहिल पर आती हुई लहरों संग
रेत पर खींचे कुछ लकीरें
बनाये स्वप्नों के घरौंदे
जिद्द कुछ अपनी भी, कुछ लहरों की
चलो कुछ पल जी लेते हैं
सागर के किनारे किनारे
कुछ सच्चे स्पानों को चुनते है
चलो कहीं दूर निकलते..!!