दोहा छंद
दोहा छंद
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चलते घुटनों बल कभी, बाल्यकाल में राम।
बलिहारी माता यहाँ, जहाँ राम वह धाम।।
पग पैजनिया घुंघरू, करें मधुर आवाज।
राजमहल में गूँजता, भुले सभी निज काज।।
ठुमक-ठुमक कर दौड़ते, बाजे हृदय मृदंग।
लीला ललित निहार कर, मुख आल्हादित मंद ।।
कहते जब माता मधुर, माँ को अति आनंद।
देखें मुखारविंद को, मधुर मुस्कान मंद।।
लिए बलैया मातु सब, नजर न लागे लोग।
काला टीका तब लगा, मंगल बने सुयोग।।