STORYMIRROR

Dr. Chanchal Chauhan

Abstract

4.5  

Dr. Chanchal Chauhan

Abstract

पत्नी हो गई मैं

पत्नी हो गई मैं

1 min
296


देखो पत्नी हो गई मैं

बेटी से पत्नी बनने मैं

मैं अपने नखरे 

अपने रूठने के अंदाज़ 

खो चुकी हूं मैं


किसी से नाराज़ होने का

 हक़ कहाँ है मुझे 

पत्नी हो गई हूँ ना 

 मनाते तो पापा थे माँ थी

 आगे पीछे लगे रहते थे

प्यार से लाड़ से 

अपना बना लेते थे


माँ आगे पीछे 

खाने की थाली 

लेकर घूमती रहती 

पापा हँसाते रहते

ससुराल में 

कभी नार

ाज़ हो जाऊं

 तो खाना छोड़ देती हूँ

 फ़िर ख़ुद ही ख़ा भी लेती हूँ


पता है कौन मनाएगा मुझे

कौन नखरे उठायेगा मेरे

 पतिदेव हाल पूछ लें

 उनका ग़रूर न टूट जाएगा

 पत्नी हो गई हूँ ना 

अब नाराज़ होने का हक़

 कहाँ है मुझे


 काश 

सोचती हूँ वो क्या दिन थे मेरे

मैं राजकुमारी अपने माँ बाप की थी

अब पत्नी हो गई मैं

जिम्मेदारी और कर्त्तव्य की

कर्तव्यनिष्ठ हो गई हूं मैं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract