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Shakuntla Agarwal

Abstract Classics

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Shakuntla Agarwal

Abstract Classics

"वरिष्ठ नागरिक"

"वरिष्ठ नागरिक"

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साठ का होते ही,

मन बड़ा हर्षाया,

वरिष्ठ नागरिक का,

तगमा जो हमने पाया,


सरकार ने भी,

राहतों का खज़ाना,

हम पर लुटाया,

दायित्वों से छुटकारा मिला,


थोड़ा सुकून पाया,

अपनी पहचान का,

लोहा मनवाया,

बाल यूँहि सफ़ेद नहीं किये,


इस कहावत ने,

समाज में स्थान दिलवाया,

सेवानिवृत हो,

पेंशनर कहलाया,


जिन जिम्मेदारियों से भागता रहे ताउम्र,

वक़्त मिलते ही उन्हें निभाया,

दायित्वों से मुक्त कहलाया,

हवाई जहाज, रेल दोनों में,

वरिष्ठ नागरिक होते ही,


सुविधाओं का लाभ उठाया,

आँख धुँधलायें चाहें,

पैर लड़खड़ायें,

चश्मा, लाठी ले "शकुन",

सारी दुनिया की सैर कर आया।


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