वक़्त ज़ाया न कर
वक़्त ज़ाया न कर
वक़्त क़ीमती है वक़्त ज़ाया न कर
रहने दे तू यहाँ आया न कर
माना माहिर है तू लफ़्ज़ों के खेल में
पर मुझे अपनी बातों में भरमाया न कर
जलाकर आबाद दरख्तों को खुद ही
तू दिखावे का मुझपर साया न कर
नाम मेरे करके जायजाद गमों की
खुशियों के तराने सुनाया न कर
बख़ूबी वाकिफ़ हूँ मैं तेरे हर ढंग से
मुझे अपने ये रंग दिखलाया न कर
चल दिया अचानक मुँह मोड़कर मुझसे
जो कहता था मैं हूँ, तू घबराया न कर
मेरी परछाईं भी हो जाये जुदा मुझसे
मुझे इतना भी तू पराया न कर
जो फ़ैसला किया तूने अच्छा ही किया
अब फ़ैसले पर अपने पछताया न कर।