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Himanshu Jaiswal

Abstract Tragedy

4.5  

Himanshu Jaiswal

Abstract Tragedy

वक़्त ज़ाया न कर

वक़्त ज़ाया न कर

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वक़्त क़ीमती है वक़्त ज़ाया न कर

रहने दे तू यहाँ आया न कर


माना माहिर है तू लफ़्ज़ों के खेल में

पर मुझे अपनी बातों में भरमाया न कर


जलाकर आबाद दरख्तों को खुद ही 

तू दिखावे का मुझपर साया न कर


नाम मेरे करके जायजाद गमों की

खुशियों के तराने सुनाया न कर


बख़ूबी वाकिफ़ हूँ मैं तेरे हर ढंग से

मुझे अपने ये रंग दिखलाया न कर


चल दिया अचानक मुँह मोड़कर मुझसे

जो कहता था मैं हूँ, तू घबराया न कर


मेरी परछाईं भी हो जाये जुदा मुझसे

मुझे इतना भी तू पराया न कर


जो फ़ैसला किया तूने अच्छा ही किया

अब फ़ैसले पर अपने पछताया न कर।


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