माँ
माँ
जगत को रचाया जिसने वो परमात्मा है
उसका ही रूप धरती पर शब्द "माँ" है
माँ से था,है और रहेगा ये संसार
क्या बताऊँ मैं "इसकी" महिमा अपार
सन्तान के लिए वो ममता का सागर है
शाश्वत सत्य ये युगों से उजागर है
स्त्री के हैं रूप कई पर "माँ" विशेष है
उसके बिन इस धरा पर कुछ भी न शेष है
"माँ" से ही सृष्टि है और है ये जीवन
कम ही है जो करदे अपना सर्वस्व अर्पण
"माँ" का हाथ है जिसपर धन्य वो सन्तान है
"माँ"से ही "घर" है बनता वरना बस मकान है
अस्तित्व तुम्हारा माँ से है ये याद रखना
उसकी सेवा से तुम कभी न भटकना
जीवन हम सबका माँ का ऋणी है
"माँ"नाम की पूंजी वाला सबसे धनी है
संभव नहीं जीवन में इस कर्ज़ को उतारना
माँ की सेवा कर तुम अपना भाग्य सवारना।