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Kuhu jyoti Jain

Romance

3  

Kuhu jyoti Jain

Romance

वो

वो

1 min
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अपने एहसासों को कविता में पिरो लेती हूँ

कुछ इस तरह मैं उससे बात कर लेती हूँ


वो ज़हन मे मेरे कुछ यूं बसा है

कि हर शख्स बस उसी का आईना है

मैं खुद से गले लग के उससे गले मिल आती हूँ

कुछ इस तरह आजकल उससे बतियाती हूँ .....


नाराज़ होना तो हक़ था उसी का पहले से

आज भी ये हक़ किसी और को नही

पर अब सामने उसके अक्स को बैठा कर मना लेती हूँ

कुछ इस तरह आजकल उससे मिल लेती हूँ


उसका मेरा रिश्ता भी अजीब सा है

मैं छूट नहीं पाती वो बांध नहीं पाता

अब अक्सर मैं ही खुद को उससे बांध आती हूँ

कुछ इस तरह आजकल रिश्ता निभाती हूँ


मेरे इंतज़ार में तूने ही खुद को फना नही किया मेरे ख़ुदा

मैंने भी तेरी ख़्वाहिश में खुद को खोया है

मेरे वजूद मे तेरा अक्स मिलाती हूँ

कुछ इस तरह मैं आज भी तेरी हो जाती हूँ



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