वो याद
वो याद
जिस एहसास को पुछा है तुमने
वो कुछ कुछ चाँद जैसा है।
न जाने कितने दाग है उसमें,
पर मेरे लिए वो बेदाग़ सा है।
ये जो ख़ामोशी है इन दरमियाँ,
इसकी वजह कुछ खूबसूरत रही होगी।
न जाने कितनी बीत गयी सदियाँ,
फिर भी कुछ आह, कहीं तो रही होगी।
कोई कुछ कह दे अगर, आज भी नहीं सुनता,
तो फिर उस ज़माने का क्या हाल बताऊँ!
जहाँ हर सिक्के पे नाम था चलता,
फिर अब मैं और क्या क्या समझाऊं!
कोई पूछ ले अगर तुमसे, तो कह देना,
मैं तो उस वक़्त भी इलज़ाम ले गया था।
अगर फिर किसी याद पे नाम निकले तो कहना,
मैं आज भी इलज़ाम लेने के लिए रुका हूँ वहाँ !