वो पहली मुलाक़ात थी
वो पहली मुलाक़ात थी
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वो मेरा थोड़ी देरी से आना और
तुम्हारा एक कोने में इंतज़ार करना
मानो सूरज उगने से पहले
लालिमा की बाट जोहता हो
फिर मुझे देखते ही बस उतनी मुस्कान देना
जितनी सूरजमुखी के खिलने को जरूरी थी
वो पहली मुलाक़ात थी, वो उन दिनों की बात थी।
मेरी आँखों ने जब तुम्हारी वो मुस्कान छू ली थी
तुम्हारा इस क़दर हिचकिचाना मानो
किसी ने छुईमुई को स्पर्श कर लिया हो
तुम्हारी झिझक को भांप कर एक मुस्कान
मेरे होंठों के कोनों से भी तो आज़ाद हुई थी
वो पहली मुलाक़ात थी, वो उन दिनों की बात थी।
अपने बारे में बताते वक़्त वो तुम्हारी आँखों का
गोल घूम कर फिर अपनी जगह पर आ जाना
मानों अभी-अभी पृथ्वी ने
सूरज का एक चक्कर पूरा किया हो
उस एक पल मेरा एक बरस बीत गया
वो एक पल मेरी पूरी दुनिया थी
वो पहली मुलाक़ात थी, वो उन दिनों की बात थी।
बोलते वक़्त तुम्हारे हाथों का हवा में लहराना
और मेरी नज़रों का तुम्हारी उंगुलियों पर टिक जाना
कि कठपुतलियों को नाच नचाती
कोई अनसुनी धुन बुनती वो उंगलियाँ
न जाने कब, पलक झपकते ब्राह्मण रच दें
मैं उस करिश्मे की साक्षी बन कर हैरान थी
वो पहली मुलाक़ात थी, वो उन दिनों की बात थी।
तुम्हारा अपने बालों में हाथ घूमाना और
नपी-तुली बातों के बीच इतना भर कह देना
कि "तुम तो बहुत व्यवस्थित हो"
तमाम उपमाओं, अलंकारों से परे
वो मेरी सबसे बड़ी तारीफ थी
वो पहली मुलाक़ात थी, वो उन दिनों की बात थी।
"थोड़ी देर और रुक जाओ" वो शब्द
जो तुम्हारी आँखों में लिखे थे, तुम कह नहीं पाए
और उन्हें पढ़ लेने के बावज़ूद मेरा ना रुकना
उस दिन अलविदा कहने में
सारी कायनात की ताक़त लगी थी
वो पहली मुलाक़ात थी, वो उन दिनों की बात थी।