वो लाल सुर्ख गुलाब..!
वो लाल सुर्ख गुलाब..!
उलझन की कील पर खड़ा,
मजबूरी में होंठ भींच रहा था,
वो लाल सुर्ख गुलाब....,
प्रेम दिवस पर,
हृदय-प्रिये की,
प्रणय लकीर खींच रहा था,
वो लाल सुर्ख गुलाब....,
अपने भाग्य का शोक मनाता,
इच्छा क्यारी सींच रहा था,
वो लाल सुर्ख गुलाब....,
वैलेंटाईन की चाह किसे है,
मातृभू की बलिवेदी हो,
या मिले जवानों का पार्थिव,
इसी कसमकस में बस पिस रहा था,
वो लाल सुर्ख गुलाब....!