वो ज़ोर से हसने लगी...
वो ज़ोर से हसने लगी...
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रात के सन्नाटे में छत पर पड़ी जो नज़र मेरी ,
न जाने वो कौन थी रात की हूर या कोई परी ,
मुझे समझ न आया ,
लम्बे बाल और अटपटा सा श्रृंगार ,
वो जोर से हंसने लगी ...
भागी मैं कमरे में धड़कनें मेरी बढ़ने लगी ,
हंसी उसकी दिल दहला गई ,
दहशत मनमें मेरे छा गई,
न जाने वो कौन थी ??
कोई बुरी आत्मा या मेरा भ्रम ,
पर जो भी थी याद उसकी आज भी
दिल को डरा जाती है ।