वो छोटी बच्चिया
वो छोटी बच्चिया
सड़को ,गलियो ,चौराहो
पर अक्सर मिल जाती है।
वो छोटी छोटी कालिया,
जो अब तक खिली भी नहीं है।
वो सड़कों पर भीख भी मांगती है,
गलियो में कूड़ा भी उठाती है।
सपने तो उनकी आंखों में भी है पढ़ने के,
लेकिन घर की जिम्मेदारियों से हार जाती है।
न जाने वो खुद को कैसे
महफूज समझती है।
यहाँ तो महल की चाहरदीवारी में भी कलियाँ,
हवस के भँवरों का शिकार हो जाती है।
