वो भी क्या दिन थे
वो भी क्या दिन थे


वो भी क्या दिन थे
कांटों से भरी जिंदगी
और ढेर सारे सपने
मगर साथ सारे अपने।
वो भी क्या दिन थे
फटे कपड़े होकर भी
पग- पग पर ठोकर भी
बहुत सारे अरमान।
वो भी क्या दिन थे
नंगे पाव चलते ही
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यूँ ही कटता था रास्ता
लगता था प्यारा समाँ।
वो भी क्या दिन थे
मिलजुलकर रहते थे
दिल की बात कहते थे
हर तरफ खुशियां ही खुशियां।
जाने कहा गये वो दिन ?
रिश्ते क्यूँ हुए सस्ते
हैवानियत की तरफ
क्यूँ और कैसे हम मुड़ गये ?