वो और वसंत
वो और वसंत
पवन सुहानी, वसंत है लाई
खिली-खिली धूप लगे सरगम सी
झूमें चम्पा, कचनार और जूही
कहे आई बेला मधुर मिलन की
मंद-मंद पवन का झोंका
उनको भी लाए कहीं से
पुष्पों की टकराहट से
उनकी आहट पास लगे
जब-जब वसंत का यौवन आया
संग अंगड़ाई उसने ली
रंग-बिरंगी सुमन से उलझी
लगे वो भी कलियाँ सी
किसको अपलक निहारूं
और अंक में, किसको भर लूं
नव-यौवन है, वसंत मुस्काती
अधखिली, वो भी लजाती
कचनार पुष्प, गिरा धरा पर
मानू वसंत संकेत, आलिंगन का
चहुँ ओर बिखरा है, कलि जूही का
या नैन तृप्त करूं, उनके शीतल मुख का।

