STORYMIRROR

Kishore Kumar

Romance

3  

Kishore Kumar

Romance

वो वासंती मौसम

वो वासंती मौसम

1 min
234


उनकी खुशबू 

अब भी ताजी है 

वर्षों से सांसों में समाई है 

जब भी चलती है

उनकी महक आने लगती है।


अब भी मंद-मुस्काती 

अधर उनकी दिखती है 

गुलिस्तां भरे चमन में 

जब कई कलियाँ आपस में 

लिपटी रहती हैं।


गेसूंओ में उलझी उंगली 

वसंत आने से महसूस होती है,

कली- लता से उलझती है 

आहिस्ता से कहती है 

मैं वहीं हूँ जिसे छेड़ा करते थे।


वो वासंती मौसम 

भी अजीब था,

पहली और आखिरी मिलन का

मिलानेवाला और

आखिरी राजदार था।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance