इश्क की आग
इश्क की आग
अविराम तुम्हारे प्रेम में रममाण हूँ
तिरोहित से रहते हो तुम नखशिख मेरे
ध्यानस्थ हूँ एक नाम को जपते
तुम्हारे ख़याल मात्र से
थिरकने लगती है प्रीत
जैसे पहली बारिश का लुत्फ़ उठाते
कानन के सीने पर नाचते है मोर
केसरिया शाम टाँक जाती है
यादों के पुष्प मेरे उर आँगन
काँपने लगते है एहसास मुस्कुराते
मिहिका सम शीत होते
हृदय मेरा कोई शिलालेख हो जैसे
अफ़सानों की भरमार स्थापित है
गुज़रे जो लम्हे संग तुम्हारे
बावले उसी की गाथा कहते है
एक सेतु निर्माण होता है
आँसू और मुस्कान के दरमियां
हँस देती हूँ रोते-रोते
याद आती है जब तुम्हारी शरारतें
तीव्रता से लिपट जाते है लब
एक दूसरे संग
लिपट जाते थे जैसे हम और तुम
इश्क की आग में उन्मुक्त होते
नहीं हो तुम, कहीं नहीं आसपास
ये जानकर एहसास थिर हो जाते है
दीये की अंतिम लौ से फड़फड़ाते।