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Bhavna Thaker

Romance

4  

Bhavna Thaker

Romance

इश्क की आग

इश्क की आग

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350


अविराम तुम्हारे प्रेम में रममाण हूँ 

तिरोहित से रहते हो तुम नखशिख मेरे

ध्यानस्थ हूँ एक नाम को जपते

तुम्हारे ख़याल मात्र से 

थिरकने लगती है प्रीत 

जैसे पहली बारिश का लुत्फ़ उठाते

कानन के सीने पर नाचते है मोर

केसरिया शाम टाँक जाती है 

यादों के पुष्प मेरे उर आँगन 

काँपने लगते है एहसास मुस्कुराते

मिहिका सम शीत होते

हृदय मेरा कोई शिलालेख हो जैसे

अफ़सानों की भरमार स्थापित है

गुज़रे जो लम्हे संग तुम्हारे 

बावले उसी की गाथा कहते है

एक सेतु निर्माण होता है 

आँसू और मुस्कान के दरमियां 

हँस देती हूँ रोते-रोते 

याद आती है जब तुम्हारी शरारतें

तीव्रता से लिपट जाते है लब 

एक दूसरे संग 

लिपट जाते थे जैसे हम और तुम

इश्क की आग में उन्मुक्त होते

नहीं हो तुम, कहीं नहीं आसपास 

ये जानकर एहसास थिर हो जाते है 

दीये की अंतिम लौ से फड़फड़ाते।



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