समर्पित हुई हैं दो आत्मायें ,
घुलने लगी हैं फिज़ा में हवायें ,
सहवास उनका पूरा हो चला है ,
चारों तरफ हैं सुकूँ की सदायें |
एक बेचैनी से दिल जल रहा था ,
कुछ पाने को कब से तड़प रहा था ,
दोनो की चाहत करीब और लायें ,
चारों तरफ हैं सुकूँ की सदायें |
जब तक समर्पण पूरा ना था ,
प्रेम भी जैसे खोया हुआ था ,
जीती है बाजी खुद को देके बलायें ,
चारों तरफ हैं सुकूँ की सदायें |
प्रेम में पागल होना पड़ेगा ,
बिना समर्पण वो कैसे जीयेगा ?
घुलना - मिलना भी होती दवायें ,
चारों तरफ हैं सुकूँ की सदायें |
सहवास दिलों की प्यास बुझाता ,
तपते बदन को राहत दिलाता ,
चलो अपने प्रेम के अब किस्से सुनायें ,
चारों तरफ हैं सुकूँ की सदायें |
समर्पण ही पृथ्वी , समर्पण ही आकाश ,
समर्पण से ही पूरा होता सहवास ,
समर्पण करके प्रेम को अपना बनायें ,
चारों तरफ हैं सुकूँ की सदायें |
समर्पित हुई हैं दो आत्मायें ,
घुलने लगी हैं फिज़ा में हवायें ,
सहवास उनका पूरा हो चला है ,
चारों तरफ हैं सुकूँ की सदायें ||