रिश्ते
रिश्ते
कितने रिश्ते बनते हैं
और कभी बिगड़ जाते हैं
कभी अपने बिखर जाते हैं
और अजनबियों से बन जाते हैं
भाई-भाई, खून का रिश्ता
उलझ उनमें होता है
दूर- दूर जिन्हें ना पहचाने
वो सबसे प्यारा होता है
कभी जमीन का बंटवारा
तो कभी मात-पिता का होता है
सगे-संबंधी अपना होता
जब अथाह खजाना होता है
बेटा-बेटी जब त्याग दिया तो
याद करके फिर क्या होता है
जब गांठ पड़ी रिश्तों में
सुलह कहाँ फिर होता है
अपनों ने तो रिश्ता तोड़ा
साथ अजनबियों का ही रहता है
वो रिश्ते निभा जाते हैं
जिनसे उम्मीद कहाँ ही रहती है।