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Kishore Kumar

Romance

4  

Kishore Kumar

Romance

वसंत का खुमार

वसंत का खुमार

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ऐसा मुख जो स्वप्न में देखा

गगन से उतरी धरा पर देखा

नख-शिखा से अद्भुत लगती

स्वप्न लोक की परी सी लगती


मुख आभा पर किरणें पड़ती 

स्वर्ण अनूठी चमक सी लगती 

पतली गरदन सुराही जैसी 

मृगनयनी सी नैनन उसकी


है वसंत का, खुमार है उस पर

माघ महिने का उभार है उन पर 

पोर-पोर आज ॠतुराज बना है

मंद-मुस्कान में राज छुपा है


भौहें जैसे कमान है साधे

अधर है, पुष्प, कली आधे-आधे

मन-चंचल, चितवन नभ को भागे

मुख-मंडल उर्वशी से लागे आगे।


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