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सतीश शेखर श्रीवास्तव “परिमल”

Romance

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सतीश शेखर श्रीवास्तव “परिमल”

Romance

तुम्हारे लिए

तुम्हारे लिए

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सरगम की लय ताल में अलाप जगाये

गीतों काव्यों को मुखड़े का अंतराल बनाये

जो धुन सजाये गाने की वो भी गाये

बसंत बहार के मधु की उपमायें भी लाये

तुम्हारे लिए संगीत के सुर-ताल सजाये है हमनें। 


कौतुक – विनोद सुन अश्रुधार गिरे

दर्द – वेदना सुन कहकहे लगे

रुदन राग जगाये हमनें सुर आलाप देकर

अभी कण्ठों को रुलाया है हमने

रुँधे स्वर को सुलाया है हमने

तुम्हारे लिए संगीत के सुर-ताल सजाये है हमनें। 


तुम्हारे संकेत पर अभी राग सौंदर्य उठा सकता हूँ

जिसे सुन कर नयन मद में मुँदने लगे

जागने लगे स्वप्न मदहोशी से आने लगे

हँसने लगे दीप सदा मेरी देखकर

आग सुलगने लगे चित्त की बात होने लगे

तुम्हारे लिए संगीत के सुर-ताल सजाये है हमनें। 


खामोश अधर भी जैसे मुस्कुराने लगे

वेदना कसकती है मन के कोने में

देखी नहीं अभी कही अनकही बातें

तुम अगर चाहो तो कह सकता हूँ

सुनकर जिसे बुझने लगे आग

जलने लगे जिसे सुनकर राख 

तुम्हारे लिए संगीत के सुर-ताल सजाये है हमनें। 


इक तेरी ही नहीं और बातें हैं भी बहुत

रह-रहकर जो मुझे उदास करती हैं

दर्द आदमी का आदमी को मालूम नहीं

कितनी साँसें बिन जिंदगी जिया करते हैं

भव रहे इकतार भैरवी राग मुझे गाने दो

जिसे सुनकर झुकने लगे चंदा भी

बवंडर भी उठने लगे धूल बनकर

तुम्हारे लिए संगीत के सुर-ताल सजाये है हमनें। 



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