प्रीत की रीत
प्रीत की रीत
मन के तारों को जो छेड़े
मधुर सरस संगीत वही है,
पिया मिलन की आस में बीते
हर क्षण,प्रीत की रीत यही है।
अधर में लिपटे शब्दों को जब
लाज से सजनी कह न पाए,
समझ के नैनों की बोली जो
व्यक्त करे, मनमीत वही है।
गीत विरह के, गीत मिलन के
हर सुख-दुख में, गीत समाहित,
मन के भाव स्वरों से मिलकर
होंठ पे आए, गीत वही है।
ये जग बैरी, प्रीत के द्रोही
मोल ना जाने प्रीतम का
हार के जग को, तुमको पा लूँ
प्रेम जगत में जीत यही है।
निज मन पर अंकुश कर ले जो
भुवन झुकाये चरणों में
जीत सके जो प्रेम से सृष्टि
पूज्य, श्रेष्ठ अभिजीत वही है।