STORYMIRROR

Rajeshwar Mandal

Romance

4  

Rajeshwar Mandal

Romance

चश्मा

चश्मा

1 min
264

याद ही नहीं है कहां गिरे 

उनकी बाली और मेरा चश्म 

पूछूं तो पूछूं किससे 

वरना लोग 

कहेंगे क्या

 

 न बंदिश न कोई पहरा था

 मौसम भी सुनहरा था

 बस शून्यता थी तो बुद्धि विवेक में 

 वरना सब कुछ अपना था ।।


 इश्क़ के अंधियारों में 

फिरते रहे रात भर 

निर्जन थल की तलाश में 

खोये एक दूजे में ऐसे

न हमें याद न उन्हें याद

ऐसे में कैसे बताऊं

कहां कहां बैठे हम साथ में ।।।


 जो उनकी ख़्वाहिश वही मेरा ख्वाब 

 दीदार कर लूं एक दुजे को बेशुमार 

 न कोई दूरी न ही कोई दीवारें थी 

 शर्त, शर्म व हया और न कोई मजबूरी ही

 वो भी अपना पल भी अपना 

 चांदनी रात इसकी गवाही थी

   

गिरे एक बार नहीं कई बार गिरे 

याद ही नहीं कहां कितनी बार गिरे 

जब याद ही नहीं कहां कहां गिरे 

तो कैसे कह दूं

बाली कहां गिरी चश्मा कहाँ गिरे ।


 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance