कृषक का वसंत
कृषक का वसंत
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पीली-पीली सरसों
खेतों में जब भी दिखती हैं,
देख कृषक हर्षाता है
पौधों को दुलराता है,
मन-पुलकित हो जाता है
आया ॠतुओं का राजा
झूम-झूम के गाता है
सखा-जनो को सुनाता है।
जब-जब गुजरे खेतों से वो
देख-देख खिल जाता है,
हरियाली मन को भाता है
स्वर्ग सा आनन्द पाता है,
चिड़ै-चुनमुन का फूदकना
दुःखी मन को बहलाता है,
हरी-भरी हरियाली देखे
अपनी सारे गमों को
इन हरियाली में छुपाता है,
कृषक कहे विधाता से
और अन्नदाता से
सदा वसंत का मौसम हो
हरा-भरा खेतों जैसा जीवन हो।