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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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विश्वास है

विश्वास है

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विश्वास है,और था भी

जब ये अन्तर्ध्यान हो गया था

हालांकि होते हुये

न होने की कहानी

जितनी दिलचस्प थी

उतनी ही त्रासद थी,

हमारे कलाकार ने

गढ़ दिया था

अपने लिये

हर चीज का रिप्लका

मसलन धर्म जैसा धर्म

राजनीति जैसी राजनीति

इंसाफ जैसा इंसाफ

और बन गया था

हमारा हुक्मरान।

तब भी बच्चा सा मन

अपनी सहजता में

विश्वास के सहारे

मुस्करा उठा था कलाकार पर

और आज भी उसका

अपने मे विश्वास है

आज भी जब

वो हालात जर्जर हैं

कलाकार की चमकदार

कृतियां धूमिल पड़ रही हैं

दिख जाता है

राम जैसा राम

किसान जैसा किसान

आंदोलन जैसा आंदोलन

आज भी बच्चे सा मन

दुख में डूबा डूबा

मुस्कराता रहता है

और कहता रहता है

मैंने कुछ गलत नहीं देखा

कुछ गलत नहीं कहा

कुछ गलत नहीं लिखा

और मेरा विश्वास है

तुम हो तो

खुद जैसा हो सकते हो।


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