विरह की होली
विरह की होली
है होली का दिन ए कैसा
है कैसा रंगीन
लोग मनाते खुशियां मिलके
रंगों के संगीन।
है अधूरा जीवन मेरा (.....) तेरे बिन !
कहीं पर बाजे ढोल नगाड़े
कहीं पर बाजे बीन
जीवन की सारी खुशियां
तू ले गई मुझसे छीन।
जिया ना जाता एक पल भी
अब (.....) तेरे बिन !
हर पल तेरी याद सताए
न कटे रैना, न दिन
हाल हुआ है ऐसा जैसे
बिन पानी के मीन।
जिया ना जाता एक पल भी
अब (.....) तेरे बिन !!
कवि अमित प्रेमशंकर ✍️
एदला,सिमरिया,चतरा (झारखण्ड)